प्रकृति की गोद में जैन धर्म एवं संस्कृति के भव्य विरासत को सुरक्षित करवाने के स्वप्न द्रष्टा सिद्धहस्तलेखक
पू. आचार्य देव श्रीमद् विजय पूर्णचन्द्रसूरीश्र्वरजी महाराज श्रुतरक्षा संकल्पशिल्पी पू. आचार्य श्री विजय युगचन्द्रसूरिजी महाराज
दिव्यक्रुपा |
पू.आ.श्री आत्म-कमल-वीर-दान-प्रेमसूरीश्र्वरजी कृपापात्र |
सुविशाल तपागच्छाधिपति जिनशासन शिरताज |
पू.आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्र्वरजी महाराजा |
सिंहगर्जना के स्वामी नि:स्पृह शिरोमणी |
पू.आचार्यदेव श्रीमद् विजय मूक्तिचन्द्रसूरीश्र्वरजी महाराजा |
प्रशमरस पयोनिधि पूर्व भारत कल्याणभूमि तीर्थोध्दारक |
पू.आचार्यदेव श्रीमद् विजय जयकुंजरसूरीश्र्वरजी महाराजा |
सदुपदेशक |
जिनबिम्ब एवं जिनागम अर्थात प्रतिमा एवं प्रत इन दोनों में एक |
अपेक्षा से प्रतिमा से प्रत का अधिक प्रतिष्ठाभरा स्थान-मान होना चाहीये |
एसी मार्मिक प्रेरणा देनेवाले प्रवचन श्रुततीर्थ सदुपदेशक |
सिध्दहस्त लेखक सूरिमन्त्र प्रभावक |
पू.आचार्यदेव श्रीमद् पूर्णचन्द्रसूरीश्र्वरजी महाराजा |
मार्गदर्शक |
ह्रदयस्पर्शी प्रवचनकार, श्रुतरक्षा संकल्प शिल्पी |
पू.आचार्य श्रीमद् विजय युगचन्द्रसूरीश्र्वरजी महाराज |
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